Saturday, December 5

All About Titanic | टाइटैनिक जहाज़ से जुड़े अनोखे सच | Unsolved Mystery

All About Titanic | टाइटैनिक जहाज़ से जुड़े अनोखे सच | Unsolved Mystery 


Samundar tale dafn ek rahashya, itihas ke panno me darj , eke esi dukhad ghatna jisne sampurn biswa ko hilakar rakhdia, yeh ghatna uss jahaj ki hai jisse sadi ka sabse bisal aur kabhi na dubnebala jahaj kaha jata tha ,iska naaam hai RMS टाइटैनिक

 

 टाइटैनिक का निर्माण 31 मार्च 1909 को American J.P. Morgan और International Marine Company की लागत से शुरू हुआ। टाइटैनिक की पतवार का 31 मई 1911 को जलावतरण किया गया और उसके अगले वर्ष की यात्रा की तयारी की जाने लगी। टाइटैनिक की कुल लम्बाई 882 फीट ओर  ढलवें की चौड़ाई 92 फीट , wajan 46,328 टन  और पानी के स्तर से डेक तक की ऊंचाई 59 फीट  थी। जहाज दो पारस्परिक जुड़े हुए चार सिलेंडर, triple-expansion steam engines और एक कम दबाव Parsons turbine  से सुसज्जित था। टाइटैनिक में 29 boiler थे जो 159 कोयला संचालित भट्टियो से जुड़े हुए थे और जहाज को 23 समुद्री मील  की शीर्ष गति प्रदान करते थे। 62 फीट  की उचाई की चार में से केवल तीन funnel कार्यात्मक थी। चौथी funnel, जो वेंटिलेशन के प्रयोजन हेतु इस्तेमाल की जाती थी, वह जहाज को अधिक प्रभावशाली रूप देने के लिए लगायी गयी थी। जहाज की कुल क्षमता यात्रियों और चालक दल के साथ 3549 थी।

टाइटैनिक ने विलासिता और बहुतायत में उसके सभी प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ दिया था। प्रथम श्रेणी के खंड पर स्विमिंग पूल, एक व्यायामशाला, , इलेक्ट्रिक स्नानगृह और एक कैफे का बरामदा था। प्रथम श्रेणी के कमरो को अलंकृत लकड़ी के तख़्तो, महंगे फर्नीचर और अन्य सजावट से सजाया गया था। इसके अलावा,  साजो सजावट से युक्त बरामदे में भोजन की पेशकश किया करते थे। जहाज की अवधि के लिए उसमे तकनीकी रूप से उन्नत सुविधाऐ शामिल की गयी थी। टाइटैनिक के प्रथम श्रेणी के खंडो में बिजली से चलने वाली तीन लिफ्ट और दूसरे वर्ग के खंड में एक लिफ्ट मौजूद थी। उसमे एक विस्तृत बिजली प्रणाली की सुविधा भी थी जो भाप चालित जनरेटर से युक्त थी और जहाज में फैले हुए बिजली के तार लाइटो में रोशनी और दो शक्तिशाली 1,500 वाट के मारकोनी रेडियो को बिजली पहुचाते थे जिसकी मदद से अलग अलग पाली में काम कर रहे ऑपरेटर यात्रिओ के संदेशों का प्रसारण और अन्य जहाजो से निरंतर संपर्क रख पाते थे। प्रथम श्रेणी के यात्रियों ने ऐसी सुविधाओं के लिए एक भारी शुल्क का भुगतान किया था। उसमे सबसे महंगे एक तरफी ट्रांस अटलांटिक पारित प्रवास के लिए 4350 $ अमरीकी डालर का भुगतान किया गया था। (जिसकी आज की तुलना में कीमत 95860 अमरीकी डॉलर से भी ज्यादा होती।)

RMS टाइटैनिक दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था। वह साउथम्पटन (इंग्लैंड) से अपनी प्रथम यात्रा पर, 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ। चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक हिमशिला से टकरा कर डूब गया जिसमें 1,517 लोगों की मृत्यु हुई जो इतिहास की सबसे बड़ी शांतिकाल समुद्री आपदाओं में से एक है।

इस टाइटैनिक जहाज का रूट एकदम तय था। 10 अप्रैल 1912 को साउथ हैम्पटन (इंग्लैंड) से चलने के बाद इससे पहले की वो न्यूयॉर्क के दक्षिणी छोर में प्रवेश करे, उससे पहले फ्रांस के चेरबर्ग और आयरलैण्ड के क्वीन्सडाउन में रुकना था। लेकिन विधाता को शायद ये मंजूर नही था। 14 अप्रैल को 4 दिन में 375 मील की यात्रा तय करके टाइटैनिक न्यूफाउंडलैंड पहुंचा था।

 

इसके बाद वो काली रात आई ,जब जहाज के समयानुसार रात को 11 बजकर 40 मिनट पर जहाज ने एक बड़े से हिम खंड को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि जहाज के पतवार की पत्तियां अंदर, स्टारबोर्ड की तरफ आ गईं। इस दुघर्टना से 16 जलरोधी दरवाजों में से 5 दरवाजे समुद्र की तरफ खुल गए। पानी तेजी से जहाज में समाने लगा

अब समय बहुत कम बचा था। स्थिति को ज्यादा बिगड़ते देख, आनन-फानन में जीवन रक्षा नौकाओं को पानी में उतारने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस प्रकार की नौकाओं में चढ़ने का भी एक प्रोटोकॉल होता है। जिसके अनुसार इस प्रकार की नौकाओं पर चढ़ने के लिए बच्चों और महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। और उस प्रोटोकॉल के चलते बहुत से पुरुषों को चढ़ने ही नही दिया गया। 2 bajkar 20 minit तक jahaj का एक भाग टूट कर पूरी तरह से पानी में समा गया। अब भी उसमें 1000 से ज्यादा लोग सवार थे।

हालांकि टाइटैनिक डूबने के ,सिर्फ 2 घंटे के अंदर ही आर.एम.एस.  की एक दूसरा यात्री पोत घटना वाली जगह पर पहुंच गया था, लेकिन वह सिर्फ 705 लोगों को ही बचा पाया।

आरएमएस टाइटैनिक, एक विशालकाय और सम्पूर्ण सुख-सुविधाओं से लैस ऐसा जहाज था, जिसका डूबना सम्पूर्ण विश्व में शोक व्याप्त कर गया था। 15 अप्रैल 1912 को जब दुनिया वालों को पता चला कि अपनी पहली यात्रा में ही ब्रिटेन से न्यूयॉर्क जा रहा टाइटैनिकआज सुबह एक बड़े से बर्फ के पहाड़ से टकराकर दक्षिण अटलांटिक महासागर में डूब गया तो दुनिया में हलचल पैदा हो गयी।

 टाइटैनिक पानी में उतरने वाला अब तक का सबसे बड़ा जहाज  था।, ऊपर से व्हाइट स्टार लाइन कंपनी द्वारा चलाये गए, तीन ओलंपिक-क्लास यात्री पोतों में से, दूसरे नंबर का यह यात्री पोत ,जब डूबा तो 1500 से ज्यादा लोगों की जिंदगियों को भी ले के डूबा था।

इस महासागरीय यात्री पोत में, दुनिया के कुछ बहुत अमीर लोगों के साथ-साथ, ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड और  सम्पूर्ण यूरोप के ऐसे हजारों लोग सवार थे, जो अमेरिका में एक नई जिंदगी की तलाश में जा रहे थे।

हालांकि अगर सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखें ,तो टाइटैनिक में जलरोधी कंपार्टमेंट, रिमोट कंट्रोल से खुलने और बंद होने वाले दरवाजों सहित कई चीजें अब तक की सबसे आधुनिक थीं लेकिन शायद पुराने समुद्री सुरक्षा के नियमों के कारण टाइटैनिक में पर्याप्त लेगों के लिए जीवन रक्षा नौकाएं नही थीं।

इस त्रासदी से विश्व भर के लोगों में इतनी ज्यादा जानें गवां देने से गम तो था ही, साथ में संचालन की इतनी बड़ी चूक पर उनमें रोष भी उमड़ पड़ा था।, उस घटना से सबक लेते हुए ब्रिटेन और संयुक्त राज्य में समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए। उससे भी बड़ा और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण जो कदम था ,वह साल 1914 को समुद्री सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की स्थापना।, जो आज भी समुद्री सुरक्षा को नियंत्रित करता है, इसके अलावा अपनी पिछली गलतियों से सीख लेते हुए बेतार संचार के संबंध में नए नियम लागू किए गए। ऐसे नियम, जो अगर पहले से लागू होते तो शायद इतनी ज्यादा जाने न जातीं।

टाइटैनिक के मलबे को खोजना, वैज्ञानिकों के लिए हमेशा से एक रुचिकर विषय रहा था।

टाइटैनिक की खोज करने वाले डॉ. Robert Ballard ने उस खोजी अभियान के बारे में बताया है. Ballard एक नेवी ऑफ़िसर हैं. इन्होंने अमेरीकी नौसेना के कई सीक्रेट मिशन को अंजाम तक पहुंचाye thee. उनकी दिलचस्पी इस खोए हुए जहाज़ को तलाशने में थी. अमेरिकी नौसेना ने उन्हें और उनकी टीम को अटलांटिक महासागर में टाइटैनिक की खोज की मंजूरी एक शर्त पर दी थी.

वो ये कि वो इसके साथ उसी जगह पर 1960 के आस-पास खो गई दो न्यूक्लीयर सबमरीन्स की भी तलाश करेंगे. दुनिया की नज़रों में वो टाइटैनिक की खोज पर निकलेंगे, लेकिन उनका असली मकसद सबमरीन्स को तलाशना होगा. Ballard ने उनकी शर्त मान ली और निकल पड़े उस ऐतिहासिक खोजी अभियान पर.

लेकिन दिक्कत ये थी कि टाइटैनिक जहां डूबा था, उसकी गहराई बहुत अधिक थी. किसी भी गोताखोर के लिए वहां जाकर उसकी तलाश करना मुश्किल था. इसलिए उन्होंने इसके लिए मशीनों का इस्तेमाल किया. ऐसी मशीन जो समुद्र तल में जाकर उसकी तस्वीरें ले सके.

इसी दौरान Ballard ने पहली सबमरीन USS Thresher को खोज निकाला. ये 1963 में अपने 122 क्रू मेंबर्स के साथ बॉस्टन के आस-पास खो गई थी. उसके कुछ दिनों बाद उन्होंने USS Scorpion नाम की दूसरी सबमरीन को भी तलाश कर लिया.

Ballard अभी अपने मिशन में कामयाब नहीं हुए थे इसलिए उन्होंने टाइटैनिक की खोज जारी रखी. उनकी मेहनत रंग लाई और 12 दिनों बाद उन्होंने टाइटैनिक को भी खोज निकाला. जब उनकी टीम ने उस जहाज़ को देखा तो इतने एक्साइटेड हो गए कि ख़ुशी के मारे nachne  लगे, पर जैसे ही उन्हें ये एहसास हुआ कि वो हज़ारों लोगों की कब्र पर कूद रहें हैं, तो उन्होंने ख़ुद को संभाला.

1985 में उसके मलबे की खोज होने के बाद से उससे जुड़े तमाम कलाकृतियों और वस्तुओं को विश्व भर में कई कई प्रदर्शनियों में दिखाया गया। टाइटैनिक अब तक का सबसे प्रसिद्ध जहाज बन चुका है। उसकी छाप हर जगह दिखाई देने लगी है फिर चाहे वह फिल्म हो किताबें हों लोकगीत हो या फिर कोई प्रदर्शनी।

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